Psychology के अनुसार लोग गलत निर्णय क्यों लेते है?

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लोग हर रोज सैंकड़ों निर्णय लेते है।

जैसे कि

क्या खाना है?,

कौन सी कपड़ा पहननी है?,

कहाँ घूमने जाना है?,

क्या खरीदना है?,

कौन सा career choose करना है?

किससे दोस्ती करनी है?

सुबह अलार्म बजने के बाद उठना है या फिर से सो जाना है?

उठने के बाद जिम जाना है या मोबाईल मे reels देखनी है?

आज कौन सी चैप्टर कि पढ़ाई करनी है?

आप भी इस तरह के के निर्णय हर रोज लेते है।

इनमे से

कुछ decisions लेना आसान होता है तो कुछ मुश्किल।

कुछ decisions को लेने मे बहुत कम समय लगता है तो कुछ निर्णय लेने मे बहुत समय लगता है।

कुछ decisions सही होती है तो कुछ गलत।

कुछ decisions से फायदा होता है तो कुछ से नुकसान और बाद मे सोचते है की यह decisions ना हीं लिया रहा होता तो सही होता।

इनमे से बहुत सा निर्णय तो बहुत आसान होती है और खुद ब खुद बिना दिमाग पर जोर दिए हीं निर्णय ले लिया जाता है वहीं कुछ decisions ऐसे होते है जिसे लेना बहुत मुश्किल होता है और उसका प्रभाव भी आपकी जिंदगी पर बहूत होता है।

Decisions जिंदगी मे होने वाली हर घटना को प्रभावित करता है, सही निर्णय आपके जिंदगी को आसान बनाती है वहीं गलत निर्णय से आपको नुकसान पहुंचता है और वह नुकसान मानसिक, पेैसे की, समय की और खुशी के बारे मे हो सकती है।

लेकिन एक चीज जो हम सब चाहते है कि मेरे द्वारा लिया गया निर्णय सही हीं हो।

निर्णय लेते वक्त तो आपको लगता है कि आपने निर्णय सही लिया है लेकिन वह बाद में गलत साबित होती है ऐसा क्यों?

क्या आपने कभी सोचा है कि लोग निर्णय तो खुद से लेते है खुद के लिए फिर भी क्यों गलत ले लेते है, खुद का नुकसान क्यों करवाते है?

आखिर एक wrong decisions के पीछे क्या कारण होती है?

यहीं पर मनोविज्ञान हमारी मदद करती है।

मनोविज्ञान हमें गलत निर्णय लेने के पीछे के कारणों को समझने में मदद करता है। इस ज्ञान का उपयोग करके हम बेहतर निर्णय ले सकते हैं और अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

इस ब्लॉग पोस्ट मे आप जानेंगे कि Psychology के अनुसार लोग गलत निर्णय क्यों लेते हैं? वो कौन कौन सी कारण होती है जो निर्णय को प्रभावित करता है?

1. Decision Fatigue – निर्णय थकान

जैसे जैसे व्यक्ति द्वारा लिए गए निर्णय की संख्या बढ़ती है decisions की quality मे कमी आती है इसे हीं इसे हीं Decision Fatigue यानि निर्णय थकान कहते है।

आसान शब्दों मे जिस तरह से हम decisions लेने की संख्या को बढ़ाते जाते है उस तरह से उसकी quality मे गिरावट आती जाती है।

और ऐसा इसलिए होता है कि जब आप ज्यादा निर्णय लेते है तो दिमाग Energy बचाना चाहती है और इसके लिए दिमाग मुख्य रूप से दो तरीका इस्तेमाल करता है।

  1. Procrastination: दिमाग फैसला नहीं लेना चाहता है और कल पर छोड़ देता है।
  2. Shortcut: दिमाग शॉर्टकट इस्तेमा करके जितना जल्दी हो सके decisions को लेना चाहता है ताकि वह Energy बचा सके।

इसलिए दिन भर ऑफिस या काम पर से आने के बाद अगर किसी व्यक्ति से पूछते है कि खाने मे क्या बनाए तो जवाब आता है ‘कुछ भी बना लो’।

यही कारण है कि मॉल में ढेर सारी कपड़ों के options try करने के बाद पूछने पर कि कैसा लग रहा है तो ज्यादातर समय जवाब आता है ‘ठीक लग रहा है’।

महत्वपूर्ण व्यक्ति जैसे बराक ओबामा और मार्क जुकरबर्ग इस थकान निर्णय से बचने के लिए एक या दो प्रकार के कपड़े हर रोज पहनने के लिए जाने जाते है ताकि उनके महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए एनर्जी बची रहे और महत्वपूर्ण निर्णय की quality मे कमी न आए।

2. जल्दबाजी मे निर्णय लेना

इस भाग दौर के जिंदगी मे जहां काम बहुत ज्यादा है और समय बहुत कम।

हम अक्सर जल्दबाजी में निर्णय लेने लगते हैं। यह एक सामान्य प्रवृत्ति बन गई है कि हम बिना पर्याप्त विचार किए या बिना सभी पहलुओं पर गौर किए कोई निर्णय ले लेते हैं। ऐसे निर्णयों में जरूरी मुद्दों और तथ्यों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, जो आगे चलकर गलत फैसलों का कारण बन सकते हैं।

जब हमारे पास समय कम होता है, तो हम अक्सर जल्दबाजी में निर्णय ले लेते हैं, बिना सभी पहलुओं पर विचार किए। और जब हम जल्दी जल्दी मे decisions लेते है तो उन जरूरी मुद्दों एवं तथ्यों को शामिल नहीं कर पाते जिससे निर्णय लेने में त्रुटि आती है।

Psychology कहती है कि आपको कभी भी rush मे decisions नहीं लेने चाहिए क्योंकि इसमें आप गलत समस्या को हल करने में लग जाते है।

उदाहरण के लिए, परीक्षा में जल्दबाजी में उत्तर भरना या बिना सोचे-समझे किसी प्रस्ताव को स्वीकार करना।

जल्दबाजी में decisions लेने से ज्यादातर लोग अल्पकालीन हल खोजते है जिसके कारण या तो समस्या फिर लौट आती है या फिर अपने साथ कई और सारी समस्या को लेकर आती है।

लोगों का स्वभाव होता है तुरंत निर्णय लेना लेकिन इससे बचे, पहले सही निर्णय लेना सीखे फिर तुरंत निर्णय लेना सीखे।

अगर आप प्रयाप्त समय लेकर भी सही निर्णय नही ले सकते तो कैसे आप उम्मीद करते है कि quick decisions लेंगे और सही साबित होगी।

3. Strong Emotions – भावनाएं

भावनाएँ हमारी ताकत हैं, लेकिन इन्हें समझना और नियंत्रित करना जरूरी है। Strong Emotions जैसे कि ज्यादा खुशी, डर, दुख, गुस्सा हमारे फैसलों पर सीधा असर डालते हैं।

Strong Emotions हमे तुरंत प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य कर सकती है जिससे लंबे समय(Long Term) के नतीजों का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है।

Psychology के अनुसार जब इंसान Strong Emotions महसूस करता है तो वह सबसे कम logic और रीजनिंग का इस्तेमाल करता है और इसलिए अगर निर्णय लेते वक्त भावनाओं को संतुलित न किया गया तो यह गलत निर्णय लेने का एक बहुत हीं प्रमुख कारण बन सकता है।

गुस्सा, डर, या उत्साह जैसे भावनात्मक स्थिति निर्णय को तर्कहीन बना देती है।

उदाहरण के लिए –

लॉटरी जीता हुआ व्यक्ति ज्यादा खुशी मे (overexcitement) बहुत जल्दी जल्दी पैसे खर्चा करने लगता है जिससे बाद मे उसे हीं खामियाजा भुगतना पड़ता है।

किसी सहकर्मी से विवाद होने पर आप गुस्से में आकर कुछ कठोर शब्द कह देते हैं, जो बाद में संबंधों को नुकसान पहुँचाते हैं। गुस्से में लिये गए ऐसे फैसले अक्सर पछतावे का कारण बनते हैं।

डर के कारण कोई जोखिम लेने से बचना, भले ही वह फायदेमंद हो।

आप ऊपर के उदाहरणों से समझ गए होंगे कि अगर भावनाओ को नियंत्रित करके निर्णय न लिया जाए तो यह गलत निर्णय का मुख्य कारण बन जाता है।

4. Peer Pressure – सामूहिक दबाव

मनुष्य स्वाभाविक रूप से सामाजिक प्राणी है और समूह में स्वीकृति की चाह रखता है।

यह मनुष्य की प्राकृतिक प्रवृत्ति का हिस्सा है। ग्रुप का हिस्सा बनने की यह चाहत उसे सुरक्षा, पहचान, और आत्म-संतुष्टि देती है।

ग्रुप चाहे कैसा भी हो सकता है परिवार का, दोस्तो का, साथ मे काम करने वाले का या किसी प्रकार का सामाजिक समूह।

हालांकि, इंसान का समूह का हिस्सा बनने कि चाहत उसके द्वारा लिए गए निर्णय को गहराई से प्रभावित करती है। और कभी कभी व्यक्ति समूह के साथ तालमेल बनाने के लिए गलत फैसले ले सकता है।

साइकोलॉजी कहती है कि group के खिलाफ जाना बहुत हीं मुश्किल होता है किसी व्यक्ति के लिए और यही कारण कभी कभी गलत निर्णय के लिए जिम्मेदार होते है।

लोग सिर्फ यह सोचकर कि मेरे साथ वाले लोग, मेरे दोस्त, मेरे परिवार क्या सोचनेंगे सोच कर गलत निर्णय ले लेते है।

उदाहरण के तौर पर-

अगर किसी समूह मे सभी लोग सिगरेट पीते है तो वह भी पीना शुरू कर देगा जो पहले कभी सिगरेट न पिता था। सिगरेट न पीना उसे ग्रुप से अलग महसूस कराता और इसी दबाव मे वह भी सिगरेट पीना शुरू कर देता है।

दोस्तों की तुलना में महंगे गैजेट खरीदना, भले ही आपकी वित्तीय स्थिति इसकी अनुमति न देती हो।

परिवार के दबाव मे आकर छात्रों का अलग करियर चुन लेना भले उसे वह करियर मे कोई रुचि न हो।

दोस्तो के दबाव मे आकर गलत रस्ते जैसे कि शराब, कॉलेज बंक मारने जैसी गलत रास्ते का चुनाव कर लेना।

शोध के अनुसार व्यक्ति 37% फैसले किसी न किसी समूह के दबाव मे आकर करते है भले वह स्वतंत्र रूप से उन्हें वो फैसले मंजूर न हीं क्यों न हो।

Peer Pressure मे इंसान खुद से विश्लेषण करना छोड़ देता है और किसी कार्य को सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि बाकी लोग वही कर रहे होते हैं। यही कारण है कि कई बार लोग गलत निर्णय ले लेते हैं।

5. Memory Distortion

मेमोरी डिस्ट्रोर्शन एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपनी यादों को गलत तरीके से याद करता है या उनमें बदलाव कर लेता है।

मनोविज्ञान के अनुसार हमारी यादें हमेशा भरोसेमंद नहीं होतीं, और गलत यादें हमारे निर्णयों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारी यादें समय के साथ कमजोर होती जाती है और साथ मे हमारी यादें बाहरी हस्तक्षेप जैसे कि मीडिया की रिपोर्ट, social media, news, इत्यादि से आसानी से भ्रमित हो जाती है फलस्वरूप सच्चाई कुछ और होती है और हम याद कुछ और कर लेते है।

जैसे – परीक्षा में पढ़ी हुई किसी जानकारी को गलत तरीके से याद करना और उत्तर गलत लिखना।
उदाहरण: आपने सोचा कि आपने उत्तर में “हाइड्रोजन” लिखा, लेकिन वास्तव में लिखा “ऑक्सीजन”।

किसी वस्तु की कीमत को गलत तरीके से याद करना।
उदाहरण: आपको लगता है कि आपने शर्ट 500 रुपये में खरीदी थी, लेकिन बाद में पता चलता है कि वह 700 रुपये की थी।

6. Poor Comparisons – गलत तुलना

निर्णय लेने के लिए हम विभिन्न विकल्पों की तुलना करते है जो सही भी है जैसे कि हमें नई मोबाइल खरीदना है तो दो या दो से अधिक मोबाइल के कीमत, फीचर्स, और खरीदने के बाद की सर्विस की तुलना करते है फिर जो सही लगता है उसका चुनाव करते है।

लेकिन जब आप तुलना हीं गलत करते है तो आपके द्वारा लिए गए निर्णय का बहुत संभावना है कि वह गलत निर्णय मे बदल जाए।

उदाहरण के लिए जब आपको दो जॉब के ऑफर आपके पास है तो सिर्फ ज्यादा सैलरी वाली जॉब का चुनाव करना गलत हो सकता है अगर आप तुलना करते वक्त अन्य कारणों जैसे कि जॉब की location, दोनो जॉब मे मिलने वाली facility, भविष्य में growth, इत्यादि को नजरअंदाज कर दे तो।

इसलिए जब भी दो या दो से अधिक विकल्पों की तुलना करे तो सही तुलना करे क्योंकि गलत तुलना, गलत निर्णय का प्रमुख कारण बन सकता है।

7. Halo Effect

यह मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जिसमें हमारी सोच और धारणाएं किसी एक सकारात्मक या नकारात्मक गुण से प्रभावित होती हैं।

आसान भाषा मे यह एक तरह का मानसिक शॉर्टकट होता है, जहां किसी व्यक्ति या वस्तु की एक अच्छी या बुरी विशेषता हमारी पूरी राय को प्रभावित करती है।

उदाहरण के लिए,

पढ़ाई मे अच्छे अंक लाने वाले को अधिक मेहनती माना जाता है।

अगर कोई चश्मा लगा रखा है तो मान लेते है कि वह पढ़ने मे बहुत तेज होगा लेकिन खेलने कूदने में कमजोर।

एक कंपनी का कोई एक प्रोडक्ट बेहतर quality का है तो हम मान लेते है कि उस कंपनी के दूसरे प्रोडक्ट्स भी अच्छी quality की होगी भले दूसरे प्रोडक्ट्स average quality का हीं क्यों न हो?

किसी नौकरी के इंटरव्यू में एक confidence से भरे व्यक्ति को अधिक योग्य मान लिया जाता है, भले ही उसकी वास्तविक योग्यता औसत हीं क्यों न हो।

हमारा दिमाग जल्दी फैसले लेने के लिए “शॉर्टकट” अपनाता है। यह शॉर्टकट अक्सर सीमित जानकारी के आधार पर होता है और हमें जल्दी निर्णय लेने में मदद करता है, लेकिन हमेशा सही नहीं होता। Halo Effect उसी शॉर्टकट मे से एक है जिससे लोग गलत निर्णय ले सकते हैं।

8. Confirmation Bias

Confirmation Bias वह प्रवृत्ति है जिसमें लोग केवल उन्हीं सूचनाओं, तथ्यों, या विचारों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो उनकी मौजूदा मान्यताओं, धारणाओं, या विचारों का समर्थन करती हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे विरोधाभासी या नई जानकारी को अनदेखा कर देते हैं, भले ही वह तर्कसंगत और सत्य हो।

आसान भाषा मे, लोग ऐसी जानकारी खोजते हैं जो उनके विचारों से मेल खाती हो और नई या विरोधी जानकारी को अविश्वसनीय मानकर नजरअंदाज करते है भले हीं नई जानकारी सत्य हीं क्यों न हो।

इस तरह से अधूरी और पक्षपातपूर्ण जानकारी के आधार पर निर्णय लेना, गलत निर्णय का प्रमुख कारण बन जाता है।

उदाहरण के लिए,

कोई व्यक्ति जो एक विशेष राजनीतिक पार्टी का समर्थन करता है, केवल उन्हीं समाचार स्रोतों को पढ़ेगा जो उसकी पार्टी के पक्ष में हों, साथ हीं उस समाचार स्रोतों को पढ़ने से बचेगा जो विशेष राजनीतिक पार्टी के आलोचना मे सही बात लिखता हो।

और यदि उसकी पार्टी की आलोचना करने वाला कोई तथ्य प्रस्तुत किया जाए, तो वह व्यक्ति उसे नकार देगा या गलत ठहराएगा, बिना उसकी सत्यता की जांच किए।

वह उन सभी लोगों की राय को भी नजरअंदाज करेगा, जो उसकी पार्टी के खिलाफ तर्क पेश करते हैं, और उन्हें पक्षपाती या गलत मान लेगा।

अगर किसी व्यक्ति ने एक खास ब्रांड की गाड़ी खरीदने का फैसला किया है और उसे विश्वास है कि यह गाड़ी सबसे अच्छी है, तो वह केवल उन articles को पढ़ेगा जो उस गाड़ी की तारीफ करते हैं। अगर वह व्यक्ति उस गाड़ी के बारे में नकारात्मक articles देखता है, तो वह उसे नजरअंदाज कर देगा।

9. Loss Aversion – हानि से बचने की प्रवृति

Loss Aversion जिसका अर्थ होता है हानि से बचने की प्रवृति एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है जो बताती है कि लोग संभावित हानि से बचने के लिए अधिक प्रयास करते हैं, जबकि समान मूल्य के लाभ को प्राप्त करने के लिए उतना प्रयास नहीं करते।

यह एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है, जहां नुकसान का डर लाभ की खुशी से अधिक प्रभावी होता है।

हानि से बचने की यह प्रवृति लोगों को अक्सर गलत निर्णय लेने पर मजबूर करती है, इसके कारण लोग जोखिम को नकारात्मक रूप में देखते है और लाभ को नजरअंदाज करते है।

यह प्रवृति हमारे निर्णय लेने की प्रक्रिया और व्यवहार को गहराई से प्रभावित करती है

उदाहरण के लिए –

यदि किसी व्यक्ति को यह विकल्प दिया जाए:

A: ₹500 का निश्चित लाभ।
B: 50% संभावना ₹1000 जीतने की और 50% संभावना कुछ भी न जीतने की।
अधिकतर लोग विकल्प A चुनते हैं, क्योंकि वे जोखिम में पड़ने से बचते हैं। लेकिन अगर विकल्प हो:

A: ₹500 का निश्चित नुकसान।
B: 50% संभावना ₹1000 खोने की और 50% संभावना कुछ भी न खोने की।
अधिकतर लोग विकल्प B चुनते हैं, क्योंकि वे नुकसान से बचने की कोशिश करते हैं।

दोनों हीं विकल्प मे लोग नुकसान से बचना चाहते है

और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दिमाग नुकसान और लाभ को अलग-अलग तरह से महसूस करता है।

यह अध्ययन से पता चलता है कि नुकसान का प्रभाव लाभ की तुलना में लगभग दोगुना अधिक होता है। परिणामस्वरूप लोग उस काम से बचते है जहां उन्हें नुकसान उठाना पर जाए जिससे वे नए अवसरों का लाभ नहीं उठा पाते।

लोग किसी संभावित हानि को टालने के लिए अधिक प्रयास करते है, जबकि समान मूल्य का लाभ प्राप्त करने के लिए उतनी मेहनत नहीं करते।

लोग ऐसे फैसले लेना पसंद करते है, जिनसे वे हानि से बच सकें, भले हीं वे फैसले कम फायदेमंद क्यों न हों।

10. Bandwagon Effect – बैंडवैगन प्रभाव

बैंडवैगन प्रभाव एक मनोवैज्ञानिक घटना है, जिसमे लोग किसी विचार, प्रवृत्ति, वस्तु, या व्यवहार को सिर्फ इसलिए अपनाते हैं क्योंकि बहुत से लोग ऐसा कर रहे होते हैं।

यह उस मानसिकता को दर्शाता है जिसमें लोग बिना गहराई से सोचे-समझे, केवल बहुमत के साथ चलने लगते हैं। वे सोचते हैं कि अगर अधिकांश लोग ऐसा कर रहे हैं, तो वह सही ही होगा।

बैंडवैगन प्रभाव के उदाहरण आपको राजनीति, खेल, मनोरंजन,social media हर जगह पर मिल जाएगा।

ऑनलाइन खरीदारी करते वक्त बैंडवैगन प्रभाव को आसानी से देखा जा सकता है। यदि किसी प्रोडक्ट को बहुत सारे अच्छे रिव्यू मिले होते है, तो लोग उस प्रोडक्ट को खरीदने की संभावना अधिक रखते हैं यह सोचकर कि अगर बहुत सारे लोगों ने इसे अच्छी रेटिंग दे रखी है तो सही हीं होगा। भले ही अन्य विकल्प ज्यादा बेहतर हों।

चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में जब किसी उम्मीदवार को बढ़त दिखाई जाती है, तो उससे प्रभावित होकर लोग उसी उम्मीदवार को वोट देने लगते हैं।

जब कोई टीम या खिलाड़ी (जैसे आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स) लोकप्रिय होता है, तो नए प्रशंसक केवल लोकप्रियता के कारण उससे जुड़ जाते हैं।

यह सभी उदाहरण दिखाते हैं कि बैंडवैगन प्रभाव हमारे दैनिक जीवन में कैसे काम करता है, जहां लोग दूसरों की पसंद और निर्णय से प्रभावित होकर अपना व्यवहार और निर्णय बदल लेते हैं।

और स्वतंत्र रूप से खुद के लिए विश्लेषण न करके निर्णय लेना गलत निर्णय का प्रमुख कारण बन जाता है।

11. Anchoring

यह मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जिसमें लोग पहली प्राप्त होने वाली सूचना(Anchor) पर बहुत अधिक निर्भर हो जाते है, और लोग इस Anchor के आस पास हीं अपना निर्णय रखते है भले हीं निर्णय का इससे कोई ताल्लुक न हो।

उदाहरण के लिए,

आप एक शर्ट खरीदने गए हैं। दुकान पर एक शर्ट की कीमत ₹1000 लिखी हुई है, लेकिन उस पर 50% की छूट दी जा रही है और अब वह ₹500 में मिल रही है।

आपको लगेगा कि यह एक शानदार डील है क्योंकि आपके दिमाग में पहला नंबर (₹1000) एक anchor बन गया है। आप यह सोचना शुरू करते हैं कि ₹1000 की शर्ट ₹500 में मिलना सस्ता है।

लेकिन असलियत में हो सकता है कि शर्ट की असली कीमत ₹500 ही हो, और ₹1000 केवल ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए लिखा गया हो।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शुरुआती कीमत (₹1000) ने आपके दिमाग में एक high anchor सेट कर दिया, और आप ₹500 की तुलना, ₹1000 से करने लगे।

Restraunt मे कभी गौर किए होंगे तो आप देखेंगे कि एक उच्च कीमत वाला व्यंजन पहले दिखाया जाता है (जैसे ₹1000 का व्यंजन), और फिर उसके बाद बाकी सस्ते व्यंजन दिखाए जाते हैं, जिनकी कीमत ₹500-₹700 के बीच होती है। ग्राहक उस पहले व्यंजन की उच्च कीमत को “एंकर” मानकर बाकी विकल्पों को सस्ते महसूस करता है।

Anchoring हर जगह इस्तेमाल होती है—बाजार, बिज़नेस, ऑफर्स, और बातचीत में।

इसलिए अगर अन्य विकल्पों का सही से विश्लेषण ना कर पाए तो यह निर्णय को नकारात्मक रूप से प्रभवित करती है।

Conclusion – निष्कर्ष

आपने सीखा कि एक गलत निर्णय के पीछे बहुत सारी factors होती है जैसे कि मानसिक, भावनात्मक, और सामाजिक जिससे अधिकतर समय लोग अंजान होते है। साथ ही, आपने यह समझा कि हमारा दिमाग किस प्रकार मानसिक शॉर्टकट (cognitive shortcuts) का उपयोग करता है। ये शॉर्टकट समय और Energy बचाने में मदद करते हैं, लेकिन कई बार इससे लोग गलत निर्णय ले लेते हैं। इसलिए जरूरी है कि आप निर्णय का विश्लेषण स्वतंत्र रूप से और सभी पहलुओं पर विचार करके करे।

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